Monday 12 January 2015

Yaadein

पिछले वक़्त जब तू गया था
पतझड़ आई थी
सब पत्ते बिखर गए थे
मैं उन सबको समेटे बैठा हू
हर रोज़
इन्ही पत्तो से बातें करता हू
अपने बीते वक़्त का हर लम्हा
इन्ही पत्तो पर उकरा हुआ है
जब भी यादों की सर्द हवा में
बदन सुन होने लगता है
होने या न होने का एहसास जम जाता है
तब सोचता हू के
इन् पत्तो को जला कर ज़िंदा रहू
पर जिस दिन
ये पत्ते जल जाएगे
मैं उस सूखे पेड़ की तरह मर जाउगा
ये नहीं के कमबख्त मरना नहीं मुझे
पर हर रोज़ एक पता जल के
तेरी यादों के साथ ज़िंदा रहने का सुकून
मुझे मरने नहीं देता