Saturday 15 April 2017

दिन और रात

किसी उजले दिन की मानिंद थी वो l भोर की लाली सा चेहरा l पूरबिया में आम के पेड़-से झूलते, उलझते गेसू l पंछियो सी चहचहाहट l खेतो में जवान कनक-से लहराते उसकी कमर के बल l उसके बदन को छू कर आती हवा, पुरवईया के नशे सा एहसास दिलाती l इतनी चंचलता के वावजूद चेहरा शांत सवेर के पहर कोई योगी जैसे ध्यान ले l
मगर मन में उठती लहरें साहिल पाने की ज़िद करती रहती l जवानी की दहलीज पर ऐसी लहरें किसी तूफ़ान के इंतज़ार में रहती है, जो इन्हें पार लगा दे l अक्सर जब इन लहरो में तूफ़ान आ मिलते है तो इन्ही लहरो में दम तोड़ देते है या लहरो को उठाकर साहिल के उस पार पटक देते है , जहाँ से उन्हें फिर समन्दर नही मिलता l न तमाम उम्र उफान आता हैं l
ऐसे ही किसी तूफ़ान से मिलने इक दिन वो दूर निकल गई, बहुत दूर, क्षितिज पर l वो मिला उसे वहाँ, किसी सुनी शाम-सा मातम लिए l उसकी काली आँखों में काली रात का मंज़र था l तूफ़ान का शोर  घेरे था उसको l खुद के और चारो तरफ से उसकी और दौड़ते अँधेरे से डरा हुआ क्षितिज से उस पार ऐसे ही किसी दिन के इंतज़ार में बैठा था वो l
उसने हाथ बढाकर उसको छूना चाहा, पर वो अपने अन्दर ही सिकुड़ने लगा, उसे डर था के उसकी कालिख उजाले को खा न ले l उसने  कहा के अपने उजाले से तुम्हारी कालिख मिटा दूँगी l यू तो बहुतो बार प्रयास कर के उसको विफलता ही मिली थी, काफी समय से उसने आस छोड़ दी थी के उसकी किस्मत में उजाला नहीं l
पर उसके  मासूम चेहरे में जाने क्या दिखाई दिया के उसने बढ़ा हुआ हाथ थामा l
अचानक गर्जना संग बिजली कौंधी तूफ़ान आया और अगले पल सब शान्त l
न सागर में कोई लहर रही, न क्षितिज पार अँधेरा l सब कुछ उजले दिन सा हो गया l अँधेरे ने उजला दिन ओढ़ लिया था lदेखने वाले कहते है के क्षण मात्र ही था, पर उन दोनों के लिए सदियों सा लम्बा गुज़रा l
मगर ये मुमकिन न था के दोनों क़यामत तक एक दुसरे में लीन रहते l दोनों समाज के नियमो में बंधे थे l हाँ, अगर नियम ब्रह्माण्ड के होते तो शायद कोई ग्रहण लगाकर या किसी ध्रुव पर जाकर जीवन व्यतीत कर सकते थे l जहाँ तमाम उम्र अँधेरा ही होता या रोशनी l पर समाज के नियमो से पार पाना दोनों से न हुआ l
अँधेरे को अकेला छोड़ दिन क्षितिज से आगे निकल गया I वो आज भी क्षितिज पर बैठा अँधेरा ढोता है I अब उसे किसी उजले दिन की कोई आस नहीं, अंधेरो से दोस्ती कर ली उसने  #मान 

No comments:

Post a Comment